जादुई चिराग। the moral story.

 मेरा दोस्त रवि वह बहुत गरीब था और उसके पापा एक छोटे से होटल में खाना बनाने का काम किया करते थे। और उसके पिता के हाथ का खाना सब लोगों को बहुत अच्छा लगता, और बहुत से लोग तो बस रवि के पिता के हाथ का खाना ही खाने आते थे।

ऐसे ही बहुत दिन बीत गए और 1 दिन रवि के पिताजी होटल से घर को आ रहे थे।

ओन्ली रास्ते में एक चिराग गिरा हुआ मिला


रवि के पिताजी ने कुछ सोचा और उसे उठा लिया,

"और घर की तरफ चलने लगी पर पहुंचने के बाद उन्होंने चुपचाप चिराग" को अपने कमरे में रख दिया और मन ही मन यह सोचने लगे चिराग में क्या होगा।

यह सोचते सोचते ही उनकी आंख लग गई। और जब रवि के पिताजी सुबह उठे उन्होंने चिराग को हाथ में लिया और उसे देखने लगे उस पर कुछ लिखा हुआ था पर उस पर मिट्टी लगी होने के कारण वह ठीक से पढ़ नहीं पा रहे थे उन्होंने उस मिट्टी को हाथ से हटाने की कोशिश करने लगे।

और तभी चिराग खिलने लगा रवि के पिताजी डर गए और उन्होंने चला को नीचे गिरा दिया फिर चिराग में से एक नीले रंग का आदमी निकला


उसे देखकर लवी के पिताजी और ज्यादा घबरा गए। 

फिर नीले रंग के आदमी ने रवि के पिता जी से कहा तुम्हें जो चाहिए मैं तुम्हें दूंगा सभी के पिताजी ने उससे जरूरत की वस्तु मांग ली,  


और ऐसे ही कई दिन बीते गए आप उन्हों की आर्थिक स्थिति सुधर रही थी।

अब रवि के पिताजी गांव के धन वान व्यक्तियों मे गीनती होने लगी। ऐसे ही बहुत साल हो गी अब रवि कि उम्र सादी लाई हो चुकी थी। और अभी भी अब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका थात। आजादी एक टीचर की जॉब करता था। एक रिश्ता रवि के लिए आया था आज वह रिश्ता रवि को बहुत अच्छा लगा और कुछ महीने बाद उन दोनों की शादी कर दी गई।

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