Moral story in hindi

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 जहां लड़कों का संग, कहां बाजे मृदंग

जहां बुड्ढों का सॉन्ग तैहा खर्चे का तंग

हमारे पिता लड़के ठक्कर निबट नहा कर पूजा करके बैठ जाते थे हम बचपन से ही उनके अंग लग गए थे माता से केवल दूध पीने तक का नाता था इसलिए पिता के साथ ही हम भी कहा कि बैठक में ही सोया करते वह अपने साथ ही हमें भी उठाते और साथ ही नाला धुला का पूजा पर बिठा लेते हम भूत का तिलक लगा देने के लिए उनके दिक करने लगते थे कुछ हंसकर कुछ जुजाला कर और कुछ डॉक्टर वह हमारे चौड़े लीला में त्रिपुंड कर देते थे हमारे लीला में बहुत खूब खुलती थी इससे में लंबी-लंबी घटाएं थी भभूत राम ने से हम खा से हम बोले बन जाते थे पिता जी हम बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते पर असल में हमारा नाम था ताकि स्वर्णनाथ हम भी उनको बापू जी कहकर पुकारा करते और माता को मैया जब बापूजी रामायण का पाठ करते तब हम उनकी बगल में बैठे बैठे आईने में अपना मुंह निहाला करते थे जब वह हमारी और देखते तब हम कुछ घर जाकर और मुस्कुरा कर आईना नीचे कर देते थे वह भी मुस्कुराकर पढ़ते थे पूजा-पाठ कर चुकने के बाद वह राम-राम लिखने लगते अपनी एक राम नाम वहीं पर हजार राम राम लिख कर रहे उसे पाठ करने की पोती के साथ बांध कर रख देते फिर वह राम नाम लिखने लगते अपनी एक राम नमः वहीं पर हजार राम नाम लिखकर वह उसे पाठ करने की पोती के साथ बांध कर रख देते फिर 500 बार कागज को छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम नाम लिखकर आटे की गोलियां में लपेट ते और अंगुलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे उस समय भी हम उनके कंधे पर विराजमान रहते थे जब वह गंगा में 11 आटे की गोलियां फेंक कर मछलियों को खिलाने  लगते तब भी हम उनके कंधे पर ही बैठे बैठे हंसा करते थे जब वह मछलियों को उजाला देकर घर की ओर लौटने लगते तब बीच रास्ते में झुके हुए पेड़ों की डाल पर हम बैठाकर झूला झूल आते थे कभी-कभी बाबूजी हमसे पूछती भी लड़ते वह शिथिल होकर हमारे बबल को बढ़ावा देते और हम उनको पछाड़ देते थे यह स्थान बढ़ जाते और हम उनकी छाती पर चढ़ जाते थे जब हम उनकी लंबी लंबी मूछें उड़ाने लगते तब वह हंसते-हंसते हमारे हाथों को मुंह से जोड़कर उन्हें छू लेते थे फिर जब हम से खट्टा और मीठा चुम्मा मांगते तब हम बाहरी बाहरी कर अपना बाया और दाया गाल उनके मुंह की ओर से देते थे बांका खट्टा मीठा लेने लगते तब अपनी दाढ़ी मूछ हमारे कोमल कालो पर लगा देते थे। हम झुनझुना कर फिर उनकी मूँछे नोचने लग जाते थे। इस पर वे बनावटी रोना रोने लगते और हम खड़े-खड़े  खिल-खिलाकर हॅसने लग जाते थे। 
उनके साथ हसते-हसते जब हम घर आते तब उनके ही हम चौके पैर खाने बैठते थी।  वह हमे अपने ही हातो से फूल, के एक  कटरे  में गोरस और बात सानकर खिलते थे। 

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